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Bhartiya Mahatirathon ki Patha pradarshika
गेदुन छोफेल का जन्म आम्दो के ग-सेर-म राज्य में सन् १९०२ में हुआ। इनकी माँ का नाम पद्मा तथा पिता डगछु दोर्जे नामक निड्मा पम्परा के बहुत बड़े योगी थे।
बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले गेदुन छोफेल नौ वर्ष तक अपने पिता से भोट व्याकरण एवं काव्य का अध्ययन किया। तत्पश्चात् चौदह साल तक बौद्ध दर्शन का अध्ययन किया। तीन-चार साल तक प्रमाण का अध्ययन किया। २५ वर्ष की आयु में बौद्ध दर्शन के गेशे (बौद्ध दर्शन में डॉक्ट्रेट) की उपाधि प्राप्त की। राहुल जी यात्रा के पन्ने (पृ० ११३) पर लिखते हैं - "बह (गेदुन छोफेल) १९३४ में मेरे साथ पहले-पहल भारत आये और तब से बारह वर्ष तक अधिकांश भारत में ही रहे।"
गेशे गेदुन छोफेल भारतीय साहित्यों के प्रेमी हो गये थे। इन्होंने अभिज्ञान शाकुन्तलम एवं भगवत गीता का बारहवाँ अध्याय को संस्कृत से तिब्बती में काव्यात्मक अनुवाद किया।
वह (गेदुन छोफेल) स्वदेश (अम्दो) लौटने के ख्याल से ल्हासा गये तो उन्हें उनके उदार विचारों के लिये पकड़ कर जेल में डाल दिया गया और बहुत कष्ट दिया गया। खैर वह जेल से बाहर निकल गये और ल्हासा में नजरबन्द सा रख के तिब्बती इतिहास के लेखन में लगा दिया गया। लेकिन अफसोस अपने ज्ञान और प्रतिभा से तिब्बत को लाभ पहुँचाने के अवसर का उपयोग न कर वह नवम्बर १९५१ में चल बसे ।