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Book Detail

Bodhicayavitara

ISBN NO :9789380359342

SKU CODE: LTWA_ 9789380359342

BRAND :Library of Tibetan Works & Archives

Rs.250.00

Bodhicayavitara

ईसवीय सातवीं शताब्दी के आचार्य शान्ति देव इस बोधिचर्यावतार ग्रन्थ के प्रणेता हैं। महायान धर्म दर्शन एवं साधना का यह अनुपम ग्रन्थ है। भारत के साथ ही तिब्बत मंगोलिया चीन जापान कोरिया आदि महायानी देशों में इस ग्रन्थ का समधिक समादर है।

ज्ञात है कि महायान बौद्ध धर्म का उद्देश्य प्राणिमात्र को दुःख से मुक्त करना है। इस उद्देश्य की सिद्धि के लिये महायानी साधक बुद्धत्व प्राप्त करना चाहता है क्योंकि बुद्धत्व के बिना उस उद्देश्य की सिद्धि सम्भव नहीं है। इसके लिये सर्वप्रथम करुणामूलक बोधिचित्त का उत्पाद आवश्यक होता है। बोधिचित्त पैदा होते ही व्यक्ति का महायान में प्रवेश हो जाता है और वह बोधिसत्व कहलाने लगता है।

बोधिचित्त के उत्पाद के अनन्तर साधक बोधिसत्त्वसंवर ग्रहण करके छह पारमिताओं की साधना प्रारम्भ करता है। बुद्धत्व प्राप्ति के लिये ज्ञानसम्भार तथा पुण्यसम्भार का अर्जन करना आवश्यक है। छह पारमिताओं में से प्रज्ञापारमिता ज्ञानसम्भार एवं शेष पाँच पारमितायें पुण्यसम्भार होती है। ये पाँचों पारमितायें उपाय और प्रज्ञापारमिता प्रज्ञा कहलाते है। केवल प्रज्ञा या केवल उपाय (पुण्यसम्भार) से सम्यक् सम्बुद्धत्व की प्राप्ति सम्भव नहीं है। प्रज्ञा के बिना शेष पारमितायें अन्धी एवं शेष पारमिताओं के बिना केवल प्रज्ञा पारमिता पंगु (लंगडी) है। दोनों के सम्मिलित सहयोग से ही निर्वाण-नगर में प्रवेश सम्भव होता है।

ISBN-10 ‏ : ‎ 9380359349

ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9380359342

Description

Bodhicayavitara

ईसवीय सातवीं शताब्दी के आचार्य शान्ति देव इस बोधिचर्यावतार ग्रन्थ के प्रणेता हैं। महायान धर्म दर्शन एवं साधना का यह अनुपम ग्रन्थ है। भारत के साथ ही तिब्बत मंगोलिया चीन जापान कोरिया आदि महायानी देशों में इस ग्रन्थ का समधिक समादर है।

ज्ञात है कि महायान बौद्ध धर्म का उद्देश्य प्राणिमात्र को दुःख से मुक्त करना है। इस उद्देश्य की सिद्धि के लिये महायानी साधक बुद्धत्व प्राप्त करना चाहता है क्योंकि बुद्धत्व के बिना उस उद्देश्य की सिद्धि सम्भव नहीं है। इसके लिये सर्वप्रथम करुणामूलक बोधिचित्त का उत्पाद आवश्यक होता है। बोधिचित्त पैदा होते ही व्यक्ति का महायान में प्रवेश हो जाता है और वह बोधिसत्व कहलाने लगता है।

बोधिचित्त के उत्पाद के अनन्तर साधक बोधिसत्त्वसंवर ग्रहण करके छह पारमिताओं की साधना प्रारम्भ करता है। बुद्धत्व प्राप्ति के लिये ज्ञानसम्भार तथा पुण्यसम्भार का अर्जन करना आवश्यक है। छह पारमिताओं में से प्रज्ञापारमिता ज्ञानसम्भार एवं शेष पाँच पारमितायें पुण्यसम्भार होती है। ये पाँचों पारमितायें उपाय और प्रज्ञापारमिता प्रज्ञा कहलाते है। केवल प्रज्ञा या केवल उपाय (पुण्यसम्भार) से सम्यक् सम्बुद्धत्व की प्राप्ति सम्भव नहीं है। प्रज्ञा के बिना शेष पारमितायें अन्धी एवं शेष पारमिताओं के बिना केवल प्रज्ञा पारमिता पंगु (लंगडी) है। दोनों के सम्मिलित सहयोग से ही निर्वाण-नगर में प्रवेश सम्भव होता है।

ISBN-10 ‏ : ‎ 9380359349

ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9380359342

Book Specifications

ISBN NO 9789380359342
Product code LTWA_ 9789380359342
Weight 650 GM
Size In Cm. 22 cm X 15 cm X 4 cm
Binding Paperback