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Dainik Dhyana charya
सन् १९८५ के अप्रैल तथा पुनः १९८६ के अक्तूबर मास में परम पावन दलाई लामा जी द्वारा बौद्ध दृष्टि ध्यान तथा कर्म पर क्रमिक रूप में उपदेश दिये गये।
उपदेशों तथा उनके पश्चात् होने वाले विचार-विमर्श को साथ-साथ अभिलिखित कर लिया जाता। पश्चात् में प्रस्तुत सामग्री के निरीक्षण कर सम्पादित ग्रन्य का रूप देना है जिसका परिणाम स्वरूप यह ग्रन्य है।
अपने उपदेशों में परम पावन बौद्ध धर्म के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं के छूते हैं और एक स्पष्ट तथा सरल विधि का प्रतिपादन करते हैं कि किस प्रकार हम एक प्रकार की दैनिक ध्यान-चर्या का अभ्यास कर सकते हैं। वे इस बात की गहराई में भी जाते हैं कि हम किस प्रकार एक कारुणिक हृदय तथा वृहत् शून्यता दृष्टि का अपने दैनिक जीवन में उत्पाद कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक प्रवचन के उपरान्त होने वाला विचार-विमर्श पाठ को सूचनात्मक तथा प्रेरणात्मक रूप प्रदान करता है। खुला विचार-विमर्श होने के कारण वह ऐसे प्रश्नों को उभारता हैं जो किसी भी गृहस्थ के जीवन में उठ सकते हैं।
एक अर्थ में परम पावन के उपदेश को मुख्य तौर पर एक टीका अर्थात् टिप्पणी कहा जा सकता है इस बारे में किस प्रकार व्यक्ति को दैनिक तांत्रिक ध्यान चर्या के अभ्यास में लगना चाहिये। हमने पुस्तक का शीर्षक भी इसी अनुरूप रखा है। मनन का आधार जिस भावना को लिया गया है वह है भगवान् बुद्ध तथा चार महान् बोधिसत्त्वों की भावना अर्थात् अवलोकितेश्वर मञ्जुश्री वज्रपाणि तथा महिला बोधिसत्त्व आर्या तारा। परम पावन इनका प्रतीकात्मक महत्व उनके ध्यान की विविध विधियाँ तथा उनके मंत्रों के उच्चारण के बारे में बताते हैं। अन्य विषय जिनकी वे चर्चा करते हैं उन्हें चर्या का सन्दर्भ सूचक माना जा सकता है।
परम पावन की व्याख्याओं से समष्टि रूप में जो चित्र उभरता है वह यह है कि यद्यपि बौद्ध मत को एक धर्म की संज्ञा दी जाती है वह मुख्यतः एक जीवन पद्धति है जिसे इस प्रकार अभिमत किया गया है कि वह हमारे जीवन में कतिपय सुख शान्ति अर्थपूर्णता तथा उद्देश्य भावना ला सके और हम अपने पर्यावरण के साथ शान्ति से रह सकें।
Isbn 13 - 9788186470633
Isbn-10 8186470638